Rakesh rakesh

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लेखनी प्रतियोगिता -19-Feb-2023 खुशी का रास्ता

प्रतिदिन प्राकृतिक नजारों और पशु पक्षियों के साथ कुछ समय बिताने से दिल को खुशी शांति सुकून मिलता है। यह बात विद्वानों ने भी मानी है। कुछ विद्वानों के विचार पढ़िए। 


पेड़ों के बीच बिताया गया समय कभी व्यर्थ नहीं जाता है। कैटरीना मेयर

 प्राकृतिक सादगी से प्रसन्न होती है। और प्रकृति कोई बनावटी नहीं है। न्यूटन 

तितली महीनों नहीं बल्कि क्षणों की गिनती करती है, और उसके पास पर्याप्त समय होता है। रविंद्र नाथ टैगोर

 पृथ्वी फूलों में हंसती है। राल्फ वाल्डो इमर्सन 

यह कहानी इन विचारों से प्रेरणा लेकर लिखी गई है। 

उत्तराखंड के कुमाऊं और गढ़वाल की पहाड़ियों के बीच में एक छोटा सा गांव था। इस गांव में सावित्री नाम की महिला रहती थी। सावित्री के पति का स्वर्गवास हो चुका था। सावित्री की गुड़िया नाम की एक बेटी थी। सावित्री की सास यानी की गुड़िया की दादी अभी जीवित थी।
 
गुड़िया की दादी बहुत ही धार्मिक विचारों वाली थी, वह पशु पक्षियों मनुष्य सभी से अच्छा और प्यार मोहब्बत का बर्ताव करती थी। गुड़िया की दादी को एक दिन मंदिर के पास एक घायल लंगूर का बच्चा मिलता है। वह उसे अपने घर ले आती है। और उसका अच्छी तरह इलाज करती है। वह लंगूर का बच्चा धीरे-धीरे उनके घर का सदस्य बन जाता है। और गुड़िया की बूढ़ी दादी प्यार से उसका नाम बाली रखती है। 

गुड़िया की दादी जब सर्दियों में चारपाई पर बिछाकर धूप मैं बैठकर मूंगफली खाती थी तो लंगूर का बच्चा गुड़िया की दादी को मूंगफली छील छील कर देता रहता था। और खुद भी खाता रहता था।

 सावित्री ने अपने घर में एक छोटी सी  टॉफी बिस्कुट मूंगफली गुड़ की पट्टी आदि सामान बेचने की दुकान खोल रखी थी। और उसका एक छोटा सा सीडी नुमा खेत भी था। दुकान और यह छोटा खेत उनकी रोजी-रोटी का साधन थे।

 बाली लंगूर सावित्री के साथ मिलकर दुकान और घर के कामों में भी उसकी मदद करता था। गुड़िया और बाली लंगूर इतने पक्के मित्र थे कि साथ ही खाते पीते खेलते सोते थे। गुड़िया कहीं भी बाहर खेलने कूदने घूमने फिरने जाती थी, तो बाली लंगूर खुद भी उसकी चौकीदारी के लिए घर से जाता था।

 गुड़िया पांचवी कक्षा में पढ़ती थी। एक दिन उसके विद्यालय में विदेश से ओलंपिक जीतकर आई उत्तराखंड की जिमनास्टिक महिला खिलाड़ी के स्वागत के लिए विद्यालय में एक बहुत बड़ा आयोजन होता है। उस आयोजन में उत्तराखंड के खेल मंत्री भी महिला खिलाड़ी का स्वागत मान सम्म्मन करने पहुंचते हैं। वह महिला खिलाड़ी सिल्वर पदक विजेता थी।

 विद्यालय के शिक्षक विद्यालय में पर्दा लगा कर सभी बच्चों और अतिथियों को उस महिला खिलाड़ी का जिमनास्टिक जितने और पुरस्कार समारोह के दृश्य दिखाते हैं। महिला खिलाड़ी के जिमनास्टिक जीतने और पुरस्कार मिलने के दृश्य को देखकर गुड़िया अपने मन में उसी समय ठान लेती है कि मैं भी एक दिन जिमनास्टिक की बड़ी और महान खिलाड़ी बनूंगी और अपने देश के लिए स्वर्ण पदक जीत के लाऊंगी।

 उसकी इस जीद की वजह से उसकी मां और गुड़िया के बीच में बहुत झगड़ा होता है। यह झगड़ा रोज होने लगता है। गुड़िया की मां और गुड़िया की दादी गुड़िया को समझाते हैं कि हम बड़ी मुश्किल से अपना  खाने-पीने का गुजारा करते हैं। तुझे हम इतना खर्चीला खिलाड़ी प्रशिक्षण कैसे दिला सकते हैं। हमें तो पेट भरना भी मुश्किल होता है।

 लेकिन गुड़िया अपनी जिद पर अड़ी रहती है। गुड़िया की मां दादी और गुड़िया के रोज के झगड़ों को बाली लंगूर बड़े ध्यान से सुनता था। और अपने मन में इन झगड़ों को सुलझाने का रास्ता खोजता रहता था।

 एक दिन गुड़िया टीवी पर जिमनास्टिक का खेल देख रही थी और अपने कमरे में वैसे ही दृश्य करने की कोशिश कर रही थी, लेकिन वह बार-बार असफल हो रही थी। उस दिन बाली लंगूर को समझ आ जाता है, कि गुड़िया की क्या बनने और करने की इच्छा है। और गुड़िया की मां दादी इनके बीच इसी बात को लेकर झगड़ा होता है।

 बाली लंगूर अपने मन में सोचता है कि जिमनास्टिक करना तो मेरे बाएं हाथ का खेल है। हम लंगूर बंदर तो बचपन से ही  महान जिमनास्टिक होते हैं। और वह उसी दिन से गुड़िया को प्रशिक्षण देने के नए-नए तरीके खोजने लगता है।

 बाली लंगूर गुड़िया को सबसे पहले इस तरीके से प्रशिक्षण देता है की जब गुड़िया अपने विद्यालय जाती है, तो बाली लंगूर एक कुत्ते को पत्थर मारकर चिड़ा देता है और वह कुत्ता समझता है कि गुड़िया ने उसको पत्थर मारा है। वह गुड़िया के पीछे भाग भागकर भोकने लगता है। गुड़िया भी भागना शुरू कर देती है और भागते भागते अपने विद्यालय पहुंच जाती है। दूसरे दिन फिर सुबह गुड़िया जब विद्यालय के लिए जाती है, तो बाली लंगूर उस कुत्ते को छेड़ देता है। गुड़िया को कुत्ते की वजह से फिर भागकर अपने विद्यालय जाना पड़ता है। बाली लंगूर एक दो बार कुत्ते को परेशान करता है। उसके बाद कुत्ता जब भी गुड़िया को देखता था, तो वह उसे दौड़ा देता था। इस तरीके से गुड़िया का दौड़ने का स्टेपना कैपेसिटी बढ़ जाती है। 

गुड़िया को दूसरे तरीके से प्रशिक्षण देता है। एक दिन गुड़िया दादी के साथ धूप में बैठकर पढ़ाई कर रही थी। बाली लंगूर गुड़िया की पुस्तक लेकर लीची के पेड़ पर चढ़ जाता है। और पुस्तक के पन्ने फाड़ने लगता है। उस दिन गुड़िया को बाली लंगूर के ऊपर बहुत गुस्सा आता है। और वह पेड़ पर चढ़कर बाली लंगूर से अपनी पुस्तक जैसी ही छिनती है। उसी समय बाली लंगूर गुड़िया को पेड़ से धक्का देकर पेड़ की टहनी से लड़का देता है। और खुद भी उस पेड़ की टहनी से लटक जाता है। जिस तरह से बाली लंगूर पेड़ से नीचे उतरता है, उसे देखकर गुड़िया भी उसी तरह से पेड़ से नीचे उतरती है।

 गुड़िया जब छत पर कपड़े सुखाने या सूखे कपड़े लेने जाती थी, तो बाली लंगूर उसके कपड़े छीन लिया करता था, और गुड़िया के सामने गुलाटिया मारना शुरू कर देता था। जब तक गुड़िया भी उसकी तरह 10-12 बार गुलाटिया नहीं मार देती थी, वह गुड़िया के कपड़े नहीं देता था।

 बाली लंगूर और नए-नए तरीकों से गुड़िया को 3 बरस तक जिमनास्टिक का प्रशिक्षण देता है। गुड़िया आठवीं कक्षा में पहुंच जाती है। उन दिनों में विदेश मे ओलंपिक मे जाने के लिए खिलाड़ियों की सूची तैयार की जा रही थी।  

एक दिन दोपहर को बाली लंगूर गुड़िया की मां गुड़िया की दीदी को एक जगह बिठा देता है। और गुड़िया के सामने गुलाटिया मारने लगता है। बिल्कुल जिमनास्टिक के खिलाड़ी की तरह और गुड़िया को इशारे करता है, अपने जैसे करने के लिए उसे देखकर गुड़िया थोड़ी देर में बाली लंगूर जैसे  जिमनास्टिक करने लगती है।

 गुड़िया को इतनी अच्छी जिमनास्टिक करते हुए देख कर गुड़िया की मां और दादी खुशी से पागल हो जाते हैं। गुड़िया की मां भागकर बाली लंगूर को सीने से लगा लेती है। और कहती है कि "गुड़िया बाली लंगूर ही तेरा गुरु है। बाली लंगूर ने तुझे जिमनास्टिक का प्रशिक्षण दिया है। गुड़िया की दादी गुड़िया की मां गुड़िया सब बाली लंगूर को उस दिन बहुत प्यार करते हैं। और उसकी पसंद का खाना बनाते हैं।"

 और दूसरे दिन सुबह गुड़िया की मां दादी बाली लंगूर सब मिलकर उत्तराखंड के खेल मंत्री घर जाते हैं। खेल मंत्री के घर पहुंचकर गुड़िया खेल मंत्री के सामने जिमनास्टिक करना शुरू कर देती है। खेल मंत्री गुड़िया को इतनी अच्छी जिमनास्टिक करते हुए देखकर बहुत खुश होता है। और उसी समय गुड़िया का नाम विदेश में होने वाले ओलंपिक की सूची में डाल देता हैं।

 और गुड़िया बाली लंगूर के प्रशिक्षण अपनी मेहनत और लगन की वजह से देश के लिए स्वर्ण पदक जीत लेती है। यह खबर टीवी समाचार पत्र मैगजीन और मीडिया में फैल जाती है कि स्वर्ण पदक विजेता गुड़िया का गुरु बाली लंगूर है गुड़िया की मां गुड़िया की दादी और गुड़िया बाली लंगूर को बहुत-बहुत धन्यवाद करते हैं। गुड़िया बाली लंगूर से कहती है कि "बाली लंगूर गुरु जी आपको अष्टांग प्रणाम।"

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5 Comments

Gunjan Kamal

20-Feb-2023 08:59 AM

लाजवाब प्रस्तुति 👌🙏🏻

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Punam verma

20-Feb-2023 08:14 AM

Very nice

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Milind salve

19-Feb-2023 10:56 PM

बेहतरीन

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